कौन कहता है तेरा ज़िक्र पराया सा लगे
तेरा एहसास मुझे धूप में साया सा लगे !
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कुछ इसलिये भी ख्वाइशो को मार देता हूँ
माँ कहती है घर की जिम्मेदारी है तुझ पर
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दिन हुआ है तो रात भी होगी,
हो मत उदास, कभी बात भी होगी,
इतने प्यार से दोस्ती की है,
जिन्दगी रही तो मुलाकात भी होगी..
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हम तो बेज़ान चीज़ों से भी वफ़ा करते हैं,
तुझमे तो फिर भी मेरी जान बसती है।
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एक पहचान हज़ारो दोस्त बना देती हैं,
एक मुस्कान हज़ारो गम भुला देती हैं,
ज़िंदगी के सफ़र मे संभाल कर चलना,
एक ग़लती हज़ारो सपने जला कर राख देती है.
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ये दोस्ती का रिश्ता भी कितना अजीब होता है
दूरिया होते हुए भी दिल कितने करीब होता है
नही देखते हम रंग,जाति और हैसियत को
क्यों की ये सभी रिस्तो से ज़्यादा अजीज होता है
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अगर तुम समझ पाते मेरी चाहत की इन्तहा
तो हम तुमसे नही तुम हमसे मोहब्बत करते
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रिश्ता तोड़ने का सबसे आसान तरीका ...
बस सच बोलते जाओ ..
और रिश्ता ख़त्म ..
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*"बेकार ज़ाया किया वक्त किताबों में*...
*सारे सबक तो कमबख्त ठोकरों से मिले हैं । "*
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*कहने वाले कुछ भी कहते रहते हैं,*
*ख़ामोशी से हम सब सहते रहते हैं...*
*कुछ दरिया में बहने वाले होते हैं,*
*कुछ के अंदर दरिया बहते रहते हैं...*
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अजीब खेल है इस मोहब्बत का,
किसी को हम न मिले और न कोई हमे मिला।
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